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अर्जुन और संध्या का सच्चा प्यार || Love story in hindi

 

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Chapter 1 : पहली मुलाक़ात


गाँव की वो सुबह हमेशा की तरह शांत थी। खेतों से आती ठंडी हवा, आम के पेड़ों पर चहकती चिड़ियाँ, और दूर से बैलों की घंटियों की आवाज़।

इसी गाँव में रहता था अर्जुन — एक सीधा-सादा लड़का, जिसकी आँखों में सपने तो बड़े थे लेकिन हालात ने उसे खेतों तक बाँध रखा था।


अर्जुन का दिल साफ़ था। मेहनती, लेकिन थोड़ा संकोची। ज़्यादातर दिन खेतों में या दोस्तों के साथ चौपाल पर गुज़र जाते। गाँव की गलियों में सब उसे जानते थे — "अर्जुन, मास्टरजी का बेटा"।


लेकिन उस सुबह कुछ अलग था…


गाँव में शहर से कोई मेहमान आया था। रामलाल चाचा की बहन का परिवार दिल्ली से आया था। उनके साथ आई थी उनकी बेटी संध्या।


संध्या, बिल्कुल अलग दुनिया से आई लड़की।

उसकी चाल, उसका पहनावा, और उसकी बातें — सब कुछ अर्जुन के लिए नया था। वो कॉलेज में पढ़ती थी, अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह बोलती थी और सपनों में आईएएस बनने की चाह रखती थी।


पहली बार जब अर्जुन ने उसे देखा, वो तालाब के किनारे खड़ी थी। हाथ में किताब और चेहरे पर हल्की मुस्कान। हवा से उड़ते बालों को सँभालने की उसकी आदत अर्जुन के दिल पर गहरी छाप छोड़ गई।


अर्जुन दूर से देख रहा था, लेकिन नज़रों को रोक नहीं पाया।

वो सोचने लगा —

"क्या ये वही शहर की लड़की है, जिसके बारे में सब बातें कर रहे थे? कितनी अलग है ये… और मैं? मैं तो बस एक साधारण गाँव का लड़का हूँ।"


लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था।


संध्या का पैर फिसला और वो तालाब के किनारे गिरते-गिरते बची। अर्जुन, जो पहले से देख रहा था, दौड़कर पहुँचा और उसे संभाल लिया।


संध्या ने घबराकर कहा —

“थैंक यू…”


अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला —

“गाँव में ‘धन्यवाद’ कहते हैं।”


दोनों की नज़रें मिलीं।

उस एक पल में जैसे समय रुक गया हो।


संध्या ने सोचा —

"गाँव के लोग कितने सच्चे और सीधे होते हैं…"


अर्जुन ने सोचा —

"शहर की लड़की है, लेकिन कितनी प्यारी लग रही है…"



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उस दिन से…


अर्जुन और संध्या की मुलाक़ातें बढ़ने लगीं।

कभी चौपाल पर, कभी खेतों के रास्ते में, कभी पनघट पर।


संध्या गाँव की सादगी से प्रभावित होती जा रही थी।

उसे अच्छा लगता कि कैसे गाँव वाले छोटे-छोटे पलों में खुश रह लेते हैं।


और अर्जुन?

वो हर दिन संध्या को देखकर सपनों की एक नई दुनिया बुनने लगा।

लेकिन दिल के किसी कोने में उसे डर भी था —

"शहर की लड़की है… वो मुझे कभी पसंद करेगी क्या?"



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यहाँ से उनकी कहानी धीरे-धीरे शुरू होती है।

एक मासूम दोस्ती, जो शायद आगे चलकर इश्क़ में बदल जाएगी।



Chapter 2 : दोस्ती से मोहब्बत तक


संध्या अब गाँव में ढलने लगी थी। सुबह खेतों में टहलना, नहर के किनारे बैठना, और औरतों के साथ पनघट से पानी भरने की रस्में देखना—ये सब उसे किसी फिल्म की तरह लगता।


लेकिन सबसे ख़ास था उसका समय अर्जुन के साथ।


पहली बार खुली बातें


एक दिन संध्या चौपाल पर आई। वहाँ बुज़ुर्ग लोग बीड़ी पीते हुए खेती-बाड़ी पर चर्चा कर रहे थे। अर्जुन पेड़ के नीचे खड़ा था।

संध्या हँसते हुए बोली —

“अरे अर्जुन, तुम यहाँ? तुम तो बहुत सीरियस लगते हो। बात क्यों नहीं करते ज्यादा?”


अर्जुन थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला —

“गाँव में लड़के-लड़कियाँ ऐसे खुलकर बात नहीं करते। लोग बातें बनाने लगते हैं।”


संध्या ने ठहाका लगाया —

“ओह… तो ये गाँव का रूल है? शहर में तो लड़के-लड़कियाँ अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं।”


उस दिन से अर्जुन ने धीरे-धीरे अपने दिल की बातें संध्या से कहना शुरू कर दिया।

वो बताता कि कैसे उसका सपना है कि गाँव में एक बड़ी लाइब्रेरी बने, ताकि बच्चे शहर जाए बिना पढ़ाई कर सकें।

संध्या ने उसकी आँखों में चमक देखी और सोचा —

"ये लड़का साधारण जरूर है, लेकिन सपने बहुत बड़े रखता है।"



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दिल की धड़कनों में बदलाव


दिन बीतते गए।

कभी दोनों खेतों में सरसों के फूलों के बीच बैठ जाते।

कभी तालाब के किनारे पत्थर फेंककर गोल-गोल लहरियाँ देखते।

संध्या हँसती तो अर्जुन को लगता पूरी दुनिया रोशन हो गई है।


अर्जुन अब अपनी डायरी में लिखने लगा —

"कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं उससे… मोहब्बत करने लगा हूँ?"


उधर संध्या भी अर्जुन को लेकर बदल रही थी।

शहर में उसने बहुत लड़के देखे थे, जिनकी बातें सिर्फ फैशन और पार्टियों तक सीमित थीं।

लेकिन अर्जुन अलग था—

उसकी सादगी, उसका सम्मान और उसकी मासूमियत…

यही चीज़ें संध्या को खींचने लगीं।



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टकराव की शुरुआत


लेकिन हर कहानी में मोड़ आता है।


एक शाम गाँव की चौपाल पर कुछ लड़के अर्जुन को चिढ़ाने लगे —

“अरे अर्जुन! सुना है तू शहर की लड़की के साथ घूमता फिरता है। तेरे बस की नहीं भाई, ये तो दिल्ली वाली है। कल को तुझे भूल जाएगी।”


अर्जुन चुप रहा, लेकिन अंदर से तिलमिला उठा।

उसे लगा जैसे उनकी दोस्ती अब दूसरों की नज़र में बोझ बनने लगी है।


उस रात अर्जुन ने संध्या से मिलने से मना कर दिया।

संध्या समझ नहीं पाई। उसने अर्जुन से पूछा —

“तुम मुझे नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे हो?”


अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा —

“संध्या, तुम शहर की हो… तुम्हारा सपना बड़ा है। मैं बस एक साधारण किसान का बेटा हूँ। शायद हम दोनों की दोस्ती को लोग गलत समझ रहे हैं।”


संध्या की आँखों में आँसू भर आए।

उसने कहा —

“अर्जुन, दोस्ती दिल से होती है, शहर-गाँव से नहीं। और… अगर मैं कहूँ कि तुम्हारी सादगी मुझे सबसे ज्यादा पसंद है?”


उसकी ये बात सुनकर अर्जुन का दिल ज़ोर से धड़क उठा।

वो कुछ कहना चाहता था… शायद इज़हार-ए-मोहब्बत।

लेकिन शब्द गले में अटक गए।



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कहानी का नया मोड़


अब दोनों के बीच रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ चुका था।

लेकिन अर्जुन का मन कहीं

 न कहीं डर से भरा था —

“क्या ये रिश्ता गाँव और शहर के फ़र्क़ को झेल पाएगा?”



Chapter 3 : मोहब्बत के इज़हार से समाज की दीवार तक


गाँव की वो शाम अलग थी।

चारों ओर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, सरसों के पीले खेतों में चाँदनी बिखरी थी।

संध्या और अर्जुन तालाब के पास बैठे थे।


संध्या ने धीरे से कहा —

“अर्जुन, क्या तुम मुझे सिर्फ दोस्त मानते हो?”


अर्जुन चौंक गया। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।

कुछ पल चुप रहने के बाद उसने कांपती आवाज़ में कहा —

“सच कहूँ तो… जब से तुम आई हो, मेरी ज़िंदगी बदल गई है। मैं तुम्हें दोस्त से कहीं ज्यादा मानता हूँ, लेकिन ये बात कहने से डरता हूँ। मैं जानता हूँ, तुम्हारा और मेरा संसार अलग है।”


संध्या ने उसकी आँखों में गहराई से देखा और मुस्कुराते हुए बोली —

“तो सुन लो अर्जुन… मैं भी तुम्हें सिर्फ दोस्त नहीं मानती। तुम्हारी सादगी, तुम्हारे सपने, तुम्हारी सच्चाई… यही सब मुझे तुम्हारे करीब ले आए हैं।”


वो पहली बार था जब दोनों ने खुलकर अपने दिल की बातें कही थीं।

उस रात अर्जुन ने आसमान की ओर देखते हुए सोचा —

"शायद भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली।"



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प्यार की खुशबू


अब अर्जुन और संध्या का रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ चुका था।

गाँव की पगडंडियों पर चलते हुए, आम के पेड़ के नीचे बातें करते हुए, और खेतों में हँसते हुए—सबमें अब एक नई चमक थी।


लेकिन जितनी तेजी से उनकी मोहब्बत बढ़ रही थी, उतनी ही तेजी से गाँव में चर्चाएँ फैलने लगीं।

लोग अब फुसफुसाने लगे थे —

“ये अर्जुन बड़ा ख़्वाब देख रहा है।”

“शहर की लड़की गाँव में कब तक रहेगी? बाद में तो उसे शहर लौटना ही है।”


अर्जुन इन बातों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करता, मगर दिल में डर गहराने लगा।



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परिवार का टकराव


एक दिन अर्जुन के पिता, मास्टरजी ने उससे गंभीर स्वर में कहा —

“अर्जुन, हमें गाँव में इज़्ज़त से जीना है। ये शहर की लड़की… ये सब खेल गाँव वालों को अच्छा नहीं लग रहा। हमें समाज की बातें भी देखनी पड़ती हैं।”


अर्जुन ने पिता से बहुत समझाने की कोशिश की —

“बाबा, ये खेल नहीं है। मैं सच में संध्या से प्यार करता हूँ। वो भी मुझे दिल से चाहती है।”


लेकिन मास्टरजी ने सिर हिलाते हुए कहा —

“बेटा, प्यार पेट नहीं भरता। शहर की लड़की हमारे रीति-रिवाज कहाँ समझ पाएगी? तू किसान है, और वो… शहर में अफ़सर बनना चाहती है। ये मेल कभी नहीं बैठ सकता।”


ये सुनकर अर्जुन का दिल टूट गया।

उसे पहली बार लगा कि समाज और परिवार उसकी मोहब्बत के रास्ते में सबसे बड़ी दीवार बनकर खड़े हैं।



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संध्या का फैसला


जब अर्जुन ने ये सब बातें संध्या को बताईं, उसकी आँखें नम हो गईं।

लेकिन उसने दृढ़ स्वर में कहा —

“अर्जुन, अगर प्यार सच्चा है तो समाज की दीवारें हमें रोक नहीं सकतीं।

तुम्हें याद है तुमने कहा था कि तुम गाँव में लाइब्रेरी खोलना चाहते हो?

तो सुनो, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा सपना पूरा हो। और जब तक तुम्हारा सपना पूरा नहीं होता, मैं शहर नहीं लौटूँगी।”


अर्जुन ने हैरानी से संध्या को देखा।

ये वही लड़की थी जिसने शहर की चमक देखी थी, लेकिन अब गाँव की धूल भरी पगडंडियों में अर्जुन का साथ देने को तैयार थी।



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कहानी का नया मोड़


अब उनकी मोहब्बत इज़हार से आगे बढ़ चुकी थी।

दोनों ने ठान लिया कि चाहे समाज कितना भी विरोध करे, वे साथ रहेंगे।


लेकिन किस्मत को शायद अभी और इम्तिहान लेने थे…

क्योंकि जल्द ही संध्या का परिवार उसे वापस दिल्ली ले जाने की तैयारी करने लगा।



Chapter 4 : जुदाई की आहट


गाँव की वो सुबह बाकी दिनों जैसी नहीं थी।

रामलाल चाचा के आँगन में हलचल मची हुई थी। दिल्ली से फोन आया था—संध्या के पिता चाहते थे कि अब वह वापस लौट आए।

“यहाँ छुट्टियाँ खत्म हो गईं, अब तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना है,” उन्होंने सख़्ती से कहा।


संध्या का दिल बैठ गया।

उसने खिड़की से बाहर देखा—अर्जुन खेत में हल चला रहा था। उसकी पीठ पसीने से भीगी थी, मगर चेहरे पर वही मासूमियत थी, जो संध्या को खींचती थी।



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जुदाई की बात


शाम को जब वो तालाब के पास मिली, उसकी आँखों में नमी थी।

संध्या बोली —

“अर्जुन… मुझे वापस शहर जाना होगा। पापा बुला रहे हैं।”


अर्जुन का हाथ काँप गया।

उसने बमुश्किल मुस्कुराते हुए कहा —

“मुझे पता था, ये दिन आएगा। गाँव की गलियाँ तुझे कब तक रोक सकती हैं?”


संध्या ने आँसू रोकते हुए कहा —

“लेकिन मैं जाना नहीं चाहती। तुम्हारे बिना… सब अधूरा लगेगा।”


अर्जुन चुप रहा। उसके अंदर हज़ार तूफ़ान उठ रहे थे, लेकिन चेहरे पर सन्नाटा था।

उसने धीमे से कहा —

“प्यार का मतलब साथ होना नहीं, एक-दूसरे के सपनों को पूरा करना भी होता है। तुम जाओ, पढ़ाई करो। और मैं यहाँ अपना सपना पूरा करूँगा। शायद एक दिन हम फिर मिलें।”



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आख़िरी दिन


गाँव की पगडंडियाँ उस दिन गवाह बनीं जब संध्या आख़िरी बार अर्जुन के साथ चली।

वो दोनों आम के पेड़ के नीचे बैठे, जहाँ पहली बार हँसी बाँटी थी।

संध्या ने अर्जुन को एक किताब थमाई —

“ये मेरी सबसे प्यारी किताब है। इसे संभाल कर रखना। जब भी मुझे याद करो, इसे पढ़ लेना।”


अर्जुन ने किताब सीने से लगा ली और बोला —

“और ये डायरी तुम्हारे लिए। इसमें मेरे सारे सपने लिखे हैं। जब भी तुम्हें लगे कि मैं तुम्हारे करीब नहीं हूँ, इसे पढ़ लेना।”


दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे।

जुदाई की आहट ने उनकी मोहब्बत को और गहरा कर दिया।



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ट्रेन का सफ़र


अगले दिन सुबह संध्या का परिवार उसे रेलवे स्टेशन ले गया।

गाँव के लोग विदा करने आए, लेकिन अर्जुन भीड़ से दूर खड़ा रहा।

जब ट्रेन चलने लगी, तभी उसकी नज़र संध्या से मिली।


संध्या ने खिड़की से हाथ हिलाया, और अर्जुन ने भी दिल थामकर सिर झुका लिया।

उस पल दोनों समझ गए —

“हमारा रिश्ता दूरी से टूटने वाला नहीं है।”



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अर्जुन का संकल्प


संध्या के जाने के बाद अर्जुन और अकेला हो गया।

लेकिन उसने खुद से वादा किया —

“अगर सच में वो मेरी तक़दीर है, तो मैं अपनी मेहनत और सपनों से उसका हक़दार बनकर रहूँगा। अब खेतों के साथ-साथ किताबों में भी मेहनत करनी होगी।”


वो अब और ज्यादा पढ़ाई करने लगा। गाँव के बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें भी पढ़ाने लगा।

धीरे-धीरे पूरे गाँव में अर्जुन की इज़्ज़त और बढ़ गई।



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कहानी का नया मोड़


उधर शहर में संध्या भी अर्जुन को भूली नहीं।

कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठकर जब भी वो किताब पढ़ती, उसे अर्जुन की मुस्कान याद आ जाती।

वो जानती थी कि उसकी मंज़िल कितनी कठिन है, लेकि

न दिल में कहीं न कहीं ये यक़ीन था —

"अर्जुन मेरा इंतज़ार कर रहा है।"



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Chapter 5 : मिलन या जुदाई?


साल बीत गए।

गाँव वही रहा, लेकिन अर्जुन बदल चुका था।

अब वो सिर्फ किसान का बेटा नहीं, बल्कि गाँव का शिक्षक और प्रेरणा बन चुका था।

उसने सच में अपनी लाइब्रेरी खोल ली थी। बच्चे किताबें पढ़ने आते, और गाँव वाले गर्व से कहते —

“ये है मास्टरजी का बेटा, जिसने गाँव का नाम रोशन किया।”


लेकिन अंदर से अर्जुन का दिल अब भी संध्या के इंतज़ार में धड़कता था।

डायरी के पन्ने वो रोज़ पलटता, मानो हर शब्द में संध्या की परछाई हो।



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शहर में संध्या


दिल्ली में संध्या ने अपनी पढ़ाई पूरी की।

अब वो एक बड़ी प्रतियोगी परीक्षा पास करके सरकारी अफ़सर बन चुकी थी।

लोग उसकी तारीफ़ करते —

“इतनी कम उम्र में इतना बड़ा मुकाम हासिल किया!”


लेकिन उसकी कामयाबी के पीछे एक अधूरापन था।

हर बार जब वो आईने में खुद को देखती, तो अर्जुन की आँखें याद आतीं।

उस किताब को, जो उसने अर्जुन को दी थी, आज भी याद करती थी।



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किस्मत का खेल


एक दिन संध्या को काम के सिलसिले में उसी ज़िले के गाँव में जाना पड़ा—

वो गाँव और कोई नहीं बल्कि अर्जुन का गाँव था।


गाड़ी जैसे ही गाँव के चौक पर रुकी, भीड़ उमड़ पड़ी।

सब अफ़सर मैडम को देखने आए थे।

संध्या ने गाड़ी से उतरते ही देखा—लोगों के बीच से अर्जुन आ रहा था।


वो पल… जैसे वक्त ठहर गया हो।

सालों की दूरी, जुदाई और तड़प एक नज़र में पिघल गई।


अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —

“स्वागत है, मैडम।”


संध्या ने आँखों में आँसू भरकर जवाब दिया —

“अर्जुन… इतने सालों बाद भी तुम वही हो।”



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समाज की आख़िरी कसौटी


गाँव वालों में फुसफुसाहट शुरू हो गई।

“देखो-देखो, वही शहर वाली लड़की लौट आई।”

“अब तो अफ़सर बन गई है, अर्जुन का क्या साथ निभाएगी?”


लेकिन इस बार अर्जुन ने चुप्पी नहीं साधी।

उसने सबके सामने कहा —

“संध्या सिर्फ शहर की लड़की नहीं है, वो मेरे सपनों का हिस्सा है।

मैंने जो कुछ भी किया, उसकी वजह वही है। अगर आज गाँव में बच्चे पढ़ रहे हैं, तो उसकी वजह उसका दिया हुआ हौसला है।”


संध्या ने भी आगे बढ़कर कहा —

“और अर्जुन… तुम सिर्फ गाँव के मास्टरजी का बेटा नहीं हो। तुमने ये साबित किया है कि सच्चा प्यार सिर्फ बातें नहीं करता, बल्कि बदलता भी है। मैं जहाँ भी रहूँगी, तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।”



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मिलन


गाँव की चौपाल गवाह बनी जब दोनों ने पहली बार सबके सामने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया।

गाँव वालों की नज़रें धीरे-धीरे ताली में बदल गईं।

सब समझ गए—ये रिश्ता सिर्फ गाँव-शहर का नहीं, बल्कि दो दिलों का संगम है।


अर्जुन और संध्या ने फैसला किया कि वो यहीं गाँव में रहेंगे।

संध्या अपने अफ़सर वाले काम के साथ-साथ गाँव की तरक्की के लिए योजनाएँ बनाएगी, और अर्जुन बच्चों को पढ़ाएगा।



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अंत


आम के पेड़ के नीचे, उसी जगह जहाँ उनकी पहली हँसी गूँजी थी, दोनों ने कसम खाई —

“अब चाहे कोई दीवार आए, हम साथ मिलकर उसे तोड़ देंगे।”


सरसों के पीले खेतों में हवा लहराई, जैसे किस्मत भी उनके मिलन पर मुस्कुरा रही हो।



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✨ और इस तरह “गाँव की गलियों से शहर की सड़कों तक” की कहानी पूरी

 हुई—

जहाँ सच्चे प्यार ने समाज, दूरी और हालात की हर दीवार को तोड़कर अपनी मंज़िल पा ली।







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